१.अकबर से पहले भी राजपूत राजाओं और मुग़लों के बीच शादियां हुआ करती थीं। इस तरह की शादियां संप्रभु सत्ता और अधीनस्थ सत्ता के बीच हुआ करती थी। धर्म आड़े नहीं आता था। सत्ता को बचाए रखने के लिए राजपूतों ने जाट और मीणा ज़मींदारों के यहां भी अपनी बेटियों की शादी की।
२.भारमल के अलावा अन्य राजपूतों ने अपनी बेटियों की शादी अकबर से की थी। अकबर की ३४ शादियों में से २१ शादी राजपूत परिवारों में हुई थी अकबर के मनसबदारों में ज़्यादातर राजपूत मनसबदार थे। कछवाहा राजपूत के मनसबदार।
३. अकबर की खूबी यही थी कि उसने धर्म परिवर्तन नहीं कराया था।
४. हरम में राजपूत स्त्रियों के वचर्स्व के कई उल्लेख मिलते हैं। एक उल्लेख में मथुरा का एक ब्राह्मण पैगम्बर को गालियां देता है। उस वक्त बहस चलती है कि ब्राह्मण को मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए। अकबर विरोध करता है और कई दिनों तक फैसला टाल देता है। उस वक्त बदायूंनी लिखता है कि अकबर पर हरम से दबाव था। जबकि ऐसा भी था। राजपूत स्त्रियों ने अकबर पर दबाव बढ़ाया कि ब्राह्मण को नहीं मारा जाना चाहिए। अकबर का दरबारी अब्दुल नबी भी मौत की सज़ा की मांग करता रहा। हार कर अकबर ने ब्राह्मण को मौत की सज़ा तो दी लेकिन अब्दुल नबीं को दरबार से हटा दिया।
५.अकबर के काल में एक विधवा के सती होने पर काफी हंगामा हुआ। अकबर सती होने से रोकना चाहता था। वो अपने साथ कई राजपूत राजाओं को लेकर उस जगह पर गया जहां सती के लिए विधवा तैयार बैठी थी। लोग उत्साह में थे और सती होते देखना चाहते थे। अकबर के हरम से दबाव था कि इसे सती होने से रोका जाना चाहिए। राजपूत राजाओं ने कहा कि लोग नाराज़ हो जाएंगे मगर अकबर फैसले पर कायम रहा। सती होने से रोक दिया गया।
६.अकबर ने एक कानून बनाया कि सती होने से पहले काज़ी की अदालत में अर्ज़ी देनी होगी। काज़ी समझायेगा। फिर भी विधवा नहीं मानेगी तो उसे सती होने की इजाज़त होगी लेकिन उसे सीधे सती होने की छूट नहीं होगी।यह कानून जहांगीर तक बना रहा।
७.अकबर के समय में अहमदाबाद की एक मिसाल मिलती है। इतिहास के स्त्रोत में ज़िक्र आता है कि कुछ मुसलमान गाय को मारने जाने जा रहे थे। ईद के मौके पर। लेकिन हिंदू लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। बात राजा अजीत सिंह तक पहुंची तो उन्होंने गाय को मारने की अनुमति दे दी। कहा कि ये उनका रीति रिवाज है। हमें दखल नहीं देनी चाहिए।
८.अकबर के समय में गायों के चरने के लिए अलग से ज़मीन दी गई।
९.अकबर की मां हमीदा बानो बेगम का देहांत हुआ तब अकबर ने हिंदू रीति रिवाज के अनुसार सर मुंडवाया था। उसके साथ कई राजपूत राजाओं ने भी सर मुंडवा लिया।
१०. अकबर भारमल पर बहुत यकीन करता था। जब वह गुजरात के दौरे पर निकला तो भारमल को आगरा का प्रभार सौंप गया। अकबर भारमल को बराबरी का दर्जा दिया करता था। इसे देख दूसरे राजपूत राजाओं ने अपनी बेटियों के शादी का प्रस्ताव खुद भेजा।
११.एक सोर्स से यह जानकारी मिलती है कि अफगानों से हारने के बाद हुमायूं ईरान में शरण ले रहा था। वहां के शाह ने जब हार का कारण पूछा तो हुमायूं ने कहा कि वह अफगानों से घिर गया था। उसके पास लड़ने के लिए सेना नहीं थी। ईरान के शाह ने कहा कि तुम स्थानीय राजाओं से वैवाहिक संबंध क्यों नहीं कायम करते। ताकि ऐसे वक्त में तुम्हारी मदद कर सके। हुमायूं को दी गई यह सलाह अकबर के वक्त काम आने लगी।
१२. अकबर के समय वेश्याओं के लिए अलग मोहल्ले बनाये गए। इनका नाम होता था शैतानपुरा। यहां आने जाने वाले लोगों का हिसाब रखा जाता था। ताकि पता चल जाए कि अकबर का कौन सा दरबारी वेश्याओं के यहां आता जाता है। अकबर ऐसे दरबारियों को दंड देता था। इसी रिकार्ड से एक दिन पता चल गया कि बीरबल भी एक रात वेश्याओं की सोहबत में थे। अकबर गुस्से में आ गया। डर कर बीरबल ने जोगी बनने का एलान कर दिया और कहा कि वह दरबार में नहीं जाएगा। लेकिन अकबर ने माफ कर दिया।
१३.यह सबसे दिलचस्प है। आज भी राजस्थान में जल्लेरा गीत गाया जाता है। जब दुल्हा घर आता है तो यह गीत गाते हैं। जल्ला मतलब जलालुद्दीन अकबर। अकबर इन गीतों में एक आदर्श दुल्हे की तरह नवाज़ा गया है। साथ ही इन गीतों में दुल्हा एक सत्ता का प्रतीक भी है।
१४. राजस्थान के एक महाराजा ने १९५३ के आस पास कुछ इतिहासकारों को बुलाया। कहा कि जितने मर्ज़ी पैसे ले लो लेकिन यह साबित करते हुए इतिहास लिखो कि राजपूतों ने अपनी मर्ज़ी से मुग़लों को बेटियां नहीं दी। इतिहासकारों ने कुछ दिन के बाद मना कर दिया कहा कि यह संभव नहीं है।
१५. कौटिल्य ने लिखा है कि हारने पर या राज सत्ता के विस्तार के लिए बेटों को बंधक नहीं देना चाहिए क्योंकि उनसे वंश बढ़ता है। बेटियों को बंधक दिया जा सकता है।
इनायत अली ज़ैदी राजस्थानी और फारसी स्त्रोतों के जानकार हैं। उन्होंने कई ऐसी बातें बताईं जिनसे बहस सार्थक हो सकती है मगर कौन सुनेगा। मीडिया के पास वक्त नहीं और राजपूत सेनाओं को राजनीति करनी है। वो इतिहास बदलना चाहते हैं। उस इतिहास को जिससे एक साझा हिंदुस्तान बना है। शादियों की कहानी यहीं नहीं रुकती है। ज़ैदी बताते हैं कि अठारहवीं सदी तक आते आते कई अमीर मुस्लिम औरतों ने अपना मज़हब बदल लिया और बाहर से आए मर्सिनरी से शादी रचाई। उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया।